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Full Hanuman Chalisa in Hindi and English !!

Hanuman Chalisa

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श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मन मुकुरु सुधारि
बरनऊ रघुवर विमल जशु जो दायक फल चारि
बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन कुमार
बल बुद्धि विद्या देहु मोहि हरहु कलेश विकार

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर
राम दूत अतुलित बल धामा
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा

महाबीर विक्रम बजरंगी
कुमति निवार सुमति के संगी
कंचन बरन बिराज सुबेसा
कानन कुंडल कुँचित केसा

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजे
काँधे मूँज जनेऊ साजे
शंकर सुवन केसरी नंदन
तेज प्रताप महा जगवंदन

विद्यावान गुनी अति चातुर
राम काज करिबे को आतुर
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया
राम लखन सीता मनबसिया

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा
बिकट रूप धरि लंक जरावा
भीम रूप धरि असुर सँहारे
रामचंद्र के काज सँवारे

लाय सजीवन लखन जियाए
श्री रघुबीर हरषि उर लाए
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई
तुम मम प्रिय भरतहिं सम भाई

सहस बदन तुम्हरो जस गावै
अस कहि श्रीपति कंठ लगावै
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा
नारद सारद सहित अहीसा

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते
कवि कोविद कहि सके कहाँ ते
तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा
राम मिलाय राज पद दीन्हा

तुम्हरो मंत्र विभीषण माना
लंकेश्वर भये सब जग जाना
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू
लील्यो ताहि मधुर फल जानू

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही
जलधि लाँघि गए अचरज नाही
दुर्गम काज जगत के जेते
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते

राम दुआरे तुम रखवारे
होत न आज्ञा बिनु पैसारे
सब सुख लहै तुम्हारी सरना
तुम रक्षक काहू को डरना

आपन तेज सम्हारो आपै
तीनों लोक हाँक ते काँपै
भूत पिशाच निकट नहि आवै
महाबीर जब नाम सुनावै

नासै रोग हरे सब पीरा
जपत निरंतर हनुमत बीरा
संकट से हनुमान छुड़ावै
मन क्रम वचन ध्यान जो लावै

सब पर राम तपस्वी राजा
तिनके काज सकल तुम साजा
और मनोरथ जो कोई लावै
सोइ अमित जीवन फल पावै

चारों जुग परताप तुम्हारा
है परसिद्ध जगत उजियारा
साधु संत के तुम रखवारे
असुर निकंदन राम दुलारे

अष्ट सिद्धी नौ निधि के दाता
अस बर दीन जानकी माता
राम रसायन तुम्हरे पासा
सदा रहो रघुपति के दासा

तुम्हरे भजन राम को पावै
जनम-जनम के दुख बिसरावै
अंतकाल रघुवर पुर जाई
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई

और देवता चित्त ना धरई
हनुमत सेई सर्व सुख करई
संकट कटै मिटै सब पीरा
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा

जै जै जै हनुमान गोसाई
कृपा करहु गुरु देव की नाई
जो सत बार पाठ कर कोई
छूटहि बंदि महा सुख होई

जो यह पढ़े हनुमान चालीसा
होय सिद्धि साखी गौरीसा
तुलसीदास सदा हरि चेरा
कीजै नाथ हृदय मँह डेरा

कीजै नाथ हृदय मँह डेरा

Shri Guru Charan Sarooja-raj Nija manu Mukura Sudhaari

Baranau Rahubhara Bimala Yasha Jo Dayaka Phala Chari

Budhee-Heen Thanu Jannikay Sumirow Pavana Kumara

Bala-Budhee Vidya Dehoo Mohee Harahu Kalesha Vikaara

Jai Hanuman gyan gun sagar

Jai Kapis tihun lok ujagar

Ram doot atulit bal dhama

Anjaani-putra Pavan sut nama

Mahabir Bikram Bajrangi

Kumati nivar sumati Ke sangi

Kanchan varan viraj subesa

Kanan Kundal Kunchit Kesha

Hath Vajra Aur Dhuvaje Viraje

Kaandhe moonj janehu sajai

Sankar suvan kesri Nandan

Tej prataap maha jag vandan

Vidyavaan guni ati chatur

Ram kaj karibe ko aatur

Prabu charitra sunibe-ko rasiya

Ram Lakhan Sita man Basiya

Sukshma roop dhari Siyahi dikhava

Vikat roop dhari lank jarava

Bhima roop dhari asur sanghare

Ramachandra ke kaj sanvare

Laye Sanjivan Lakhan Jiyaye

Shri Raghuvir Harashi ur laye

Raghupati Kinhi bahut badai

Tum mam priye Bharat-hi-sam bhai

Sahas badan tumharo yash gaave

Asa-kahi Shripati kanth lagaave

Sankadhik Brahmaadi Muneesa

Narad-Sarad sahit Aheesa

Yam Kuber Digpaal Jahan te

Kavi kovid kahi sake kahan te

Tum upkar Sugreevahin keenha

Ram milaye rajpad deenha

Tumharo mantra Vibheeshan maana

Lankeshwar Bhaye Sub jag jana

Yug sahastra jojan par Bhanu

Leelyo tahi madhur phal janu

Prabhu mudrika meli mukh mahee

Jaladhi langhi gaye achraj nahee

Durgaam kaj jagath ke jete

Sugam anugraha tumhre tete

Ram dwaare tum rakhvare

Hoat na agya binu paisare

Sub sukh lahae tumhari sar na

Tum rakshak kahu ko dar naa

Aapan tej samharo aapai

Teenhon lok hank te kanpai

Bhoot pisaach Nikat nahin aavai

Mahavir jab naam sunavae

Nase rog harae sab peera

Japat nirantar Hanumant beera

Sankat se Hanuman chudavae

Man Karam Vachan dyan jo lavai

Sab par Ram tapasvee raja

Tin ke kaj sakal Tum saja

Aur manorath jo koi lavai

Sohi amit jeevan phal pavai

Charon Yug partap tumhara

Hai persidh jagat ujiyara

Sadhu Sant ke tum Rakhware

Asur nikandan Ram dulhare

Ashta-sidhi nav nidhi ke dhata

As-var deen Janki mata

Ram rasayan tumhare pasa

Sada raho Raghupati ke dasa

Tumhare bhajan Ram ko pavai

Janam-janam ke dukh bisraavai

Anth-kaal Raghuvir pur jayee

Jahan janam Hari-Bakht Kahayee

Aur Devta Chit na dharehi

Hanumanth se hi sarve sukh karehi

Sankat kate-mite sab peera

Jo sumirai Hanumat Balbeera

Jai Jai Jai Hanuman Gosahin

Kripa Karahu Gurudev ki nyahin

Jo sat bar path kare kohi

Chutehi bandhi maha sukh hohi

Jo yah padhe Hanuman Chalisa

Hoye siddhi sakhi Gaureesa

Tulsidas sada hari chera

Keejai Nath Hridaye mein dera

Pavan Tanay Sankat Harana

Mangala Murati Roop

Ram Lakhana Sita Sahita

Hriday Basahu Soor Bhoop



दोहा     श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।     बरनऊँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥          बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवनकुमार ।          बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार ॥                   चौपाई        जय हनुमान ज्ञान गुन सागर ।        जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥            राम दूत अतुलित बल धामा ।            अंजनिपुत्र पवनसुत नामा ॥        महाबीर बिक्रम बजरंगी ।        कुमति निवार सुमति के संगी ॥            कंचन बरन बिराज सुबेसा ।            कानन कुंडल कुंचित केसा ॥        हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै ।        काँधे मूँज जनेऊ साजै ॥            संकर सुवन केसरीनंदन ।            तेज प्रताप महा जग बंदन ॥        विद्यावान गुनी अति चातुर ।        राम काज करिबे को आतुर ॥            प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।            राम लखन सीता मन बसिया ॥        सूक्श्म रूप धरि सियहिं दिखावा ।        बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥            भीम रूप धरि असुर सँहारे ।            रामचंद्र के काज सँवारे ॥        लाय सजीवन लखन जियाये ।        श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥            रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई ।            तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥        सहस बदन तुम्हरो जस गावैं ।        अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं ॥            सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा ।            नारद सारद सहित अहीसा ॥        जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते ।        कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥            तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा ।            राम मिलाय राज पद दीन्हा ॥        तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना ।        लंकेस्वर भए सब जग जाना ॥            जुग सहस्र जोजन पर भानू ।            लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥        प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।        जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥        दुर्गम काज जगत के जेते ।            सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥        राम दुआरे तुम रखवारे ।        होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥            सब सुख लहै तुम्हारी सरना ।            तुम रच्छक काहू को डर ना ॥        आपन तेज संहारो आपै ।        तीनों लोक हाँक तें काँपै ॥            भूत पिसाच निकट नहिं आवै ।            महाबीर जब नाम सुनावै ॥        नासै रोग हरै सब पीरा ।        जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥            संकट तें हनुमान छुड़ावै ।            मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥        सब पर राम तपस्वी राजा ।        तिन के काज सकल तुम साजा ॥            और मनोरथ जो कोई लावै ।            सोई अमित जीवन फल पावै ॥        चारों जुग परताप तुम्हारा ।        है परसिद्ध जगत उजियारा ॥            साधु संत के तुम रखवारे ।            असुर निकंदन राम दुलारे ॥        अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता ।        अस बर दीन जानकी माता ॥            राम रसायन तुम्हरे पासा ।            सदा रहो रघुपति के दासा ॥        तुम्हरे भजन राम को पावै ।        जनम जनम के दुख बिसरावै ॥            अंत काल रघुबर पुर जाई ।            जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥        और देवता चित्त न धरई ।        हनुमत सेई सर्ब सुख करई ॥            संकट कटै मिटै सब पीरा ॥            जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥        जै जै जै हनुमान गोसाईं ।        कृपा करहु गुरु देव की नाईं ॥        जो सत बार पाठ कर कोई ।            छूटहि बंदि महा सुख होई ॥        जो यह पढ़ै हनुमान चलीसा ।        होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥            तुलसीदास सदा हरि चेरा ।            कीजै नाथ हृदय मँह डेरा ॥ दोहा          पवनतनय संकट हरन मंगल मूरति रूप ।          राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप ॥ आरती        मंगल मूरती मारुत नंदन        सकल अमंगल मूल निकंदन        पवनतनय संतन हितकारी        हृदय बिराजत अवध बिहारी        मातु पिता गुरू गणपति सारद        शिव समेट शंभू शुक नारद        चरन कमल बिन्धौ सब काहु        देहु रामपद नेहु निबाहु        जै जै जै हनुमान गोसाईं        कृपा करहु गुरु देव की नाईं        बंधन राम लखन वैदेही        यह तुलसी के परम सनेही        सियावर रामचंद्रजी की जय ॥
 


**हनुमान चालीसा का हिंदी में अर्थ और व्याख्या**  
हनुमान चालीसा, गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित एक प्रसिद्ध भक्तिपूर्ण काव्य है, जो भगवान हनुमान की महिमा और गुणों का वर्णन करता है। इसमें कुल 40 दोहे (चालीसा) हैं।  

### **दोहा**  
**श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।  
बरनउँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि॥**  
**बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।  
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार॥**  

**अर्थ:**  
गुरु के चरणों की धूल से अपने मनरूपी दर्पण को स्वच्छ करके भगवान राम के पवित्र यश का वर्णन करता हूं। हे पवनपुत्र हनुमान, मैं अज्ञानी हूं। मुझे बल, बुद्धि और विद्या प्रदान करें और मेरे दुखों और दोषों को दूर करें।  

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### **चौपाइयाँ और उनका अर्थ**  

**1. जय हनुमान ज्ञान गुण सागर।  
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥**  
**अर्थ:**  
हे हनुमान, आप ज्ञान और गुणों के भंडार हैं। हे वानरों के राजा, आपकी महिमा तीनों लोकों में प्रसिद्ध है।  

**2. रामदूत अतुलित बलधामा।  
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा॥**  
**अर्थ:**  
आप भगवान राम के दूत हैं, और अतुलनीय बल के धाम हैं। आप अंजनी के पुत्र और पवनदेव के नाम से प्रसिद्ध हैं।  

**3. महाबीर बिक्रम बजरंगी।  
कुमति निवार सुमति के संगी॥**  
**अर्थ:**  
आप महावीर हैं, अपार पराक्रम के धनी हैं और बजरंगबली के नाम से जाने जाते हैं। आप बुरी बुद्धि को नष्ट करते हैं और अच्छी संगति देते हैं।  

**4. कनक वर्ण विराज सुबेसा।  
कानन कुंडल कुंचित केसा॥**  
**अर्थ:**  
आपका स्वर्णिम रंग और सुंदर वस्त्र शोभा बढ़ाते हैं। आपके कानों में कुंडल हैं और केश घुंघराले हैं।  

**5. हाथ वज्र औ ध्वजा विराजे।  
काँधे मूँज जनेऊ साजे॥**  
**अर्थ:**  
आपके हाथ में वज्र और ध्वजा (ध्वज) सुशोभित हैं। आपके कंधे पर पवित्र जनेऊ सुशोभित है।  

---

हनुमान चालीसा की व्याख्या बहुत विस्तृत है और इसका संपूर्ण अर्थ विस्तार से समझाने के लिए प्रत्येक चौपाई का अलग-अलग वर्णन करना होता है। आपने जो पूछा है, उसका कुछ हिस्सा मैंने विस्तार से बताया है, लेकिन यह पूरी हनुमान चालीसा का पूर्ण अर्थ नहीं है।  

यदि आप पूरी **हनुमान चालीसा** की हिंदी में विस्तृत व्याख्या चाहते हैं, तो प्रत्येक चौपाई और उसके अर्थ को विस्तार से समझा सकता हूँ। कृपया बताएं कि आप पूरे चालीसा का अर्थ चाहते हैं या विशेष चौपाइयों पर जोर देना चाहते हैं।  

आपकी सहूलियत के लिए, यहाँ आगे की चौपाइयों का अर्थ संक्षेप में बता रहा हूँ:  

---

**6. शंकर सुवन केसरी नंदन।  
तेज प्रताप महा जग वंदन॥**  
**अर्थ:**  
आप भगवान शिव के अवतार और केसरी के पुत्र हैं। आपके तेज और प्रताप को पूरी दुनिया नमन करती है।  

**7. विद्यावान गुणी अति चातुर।  
राम काज करिबे को आतुर॥**  
**अर्थ:**  
आप विद्या और गुणों से भरपूर, अत्यंत चतुर हैं। आप सदा भगवान राम के कार्य करने के लिए तत्पर रहते हैं।  

**8. प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।  
राम लखन सीता मन बसिया॥**  
**अर्थ:**  
आप भगवान राम के चरित्र को सुनने में आनंदित होते हैं। राम, लक्ष्मण और सीता जी सदा आपके हृदय में वास करते हैं।  

आइए, हनुमान चालीसा की अगली चौपाइयों और उनके अर्थ को विस्तार से समझते हैं।  

---

**9. सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।  
विकट रूप धरि लंक जरावा॥**  
**अर्थ:**  
आपने सूक्ष्म (छोटा) रूप धारण कर माता सीता को दर्शन दिए और विकराल रूप धारण कर लंका का दहन किया।  

**10. भीम रूप धरि असुर संहारे।  
रामचंद्र के काज सँवारे॥**  
**अर्थ:**  
आपने भीषण रूप धारण कर राक्षसों का संहार किया और भगवान राम के कार्य को सफलतापूर्वक पूरा किया।  

---

**11. लाय सजीवन लखन जियाये।  
श्रीरघुवीर हरषि उर लाये॥**  
**अर्थ:**  
आप संजीवनी बूटी लेकर आए और लक्ष्मण जी का जीवन बचाया। इससे श्रीराम ने प्रसन्न होकर आपको हृदय से लगाया।  

**12. रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।  
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥**  
**अर्थ:**  
भगवान राम ने आपकी बहुत प्रशंसा की और कहा कि आप मुझे अपने भाई भरत के समान प्रिय हैं।  

---

**13. सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।  
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥**  
**अर्थ:**  
भगवान विष्णु ने कहा कि आपके गुणों का वर्णन सहस्र मुखों से भी नहीं किया जा सकता। ऐसा कहकर उन्होंने आपको गले से लगाया।  

**14. सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।  
नारद सारद सहित अहीसा॥**  
**अर्थ:**  
सनक, सनंदन, ब्रह्मा, नारद, सरस्वती और शेषनाग आपकी महिमा का वर्णन करते हैं।  

---

**15. जम कुबर दिगपाल जहाँ ते।  
कवि कोविद कहि सके कहाँ ते॥**  
**अर्थ:**  
यमराज, कुबेर, दिशाओं के रक्षक और कवि, विद्वान आपकी महिमा का पूर्ण रूप से वर्णन करने में असमर्थ हैं।  

**16. तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।  
राम मिलाय राजपद दीन्हा॥**  
**अर्थ:**  
आपने सुग्रीव पर उपकार किया, उन्हें भगवान राम से मिलाया और उनका खोया हुआ राज्य वापस दिलाया।  

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**17. तुम्हरो मंत्र विभीषण माना।  
लंकेश्वर भए सब जग जाना॥**  
**अर्थ:**  
विभीषण ने आपका मंत्र स्वीकार किया और लंका के राजा बने। यह पूरी दुनिया जानती है।  

**18. जुग सहस्र जोजन पर भानू।  
लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥**  
**अर्थ:**  
आपने हजारों योजन दूर स्थित सूर्य को मीठा फल समझकर निगल लिया।  

---

**19. प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।  
जलधि लांघि गये अचरज नाहीं॥**  
**अर्थ:**  
आपने भगवान राम की अंगूठी अपने मुख में रख ली और समुद्र को लांघ गए। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है।  

**20. दुर्गम काज जगत के जेते।  
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥**  
**अर्थ:**  
जगत के कठिन से कठिन कार्य आपकी कृपा से सहज हो जाते हैं।  

---

आइए, हनुमान चालीसा की अगली चौपाइयों और उनके अर्थ को विस्तार से समझते हैं।  

---

**21. राम दुआरे तुम रखवारे।  
होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥**  
**अर्थ:**  
आप भगवान राम के द्वार के रक्षक हैं। आपकी अनुमति के बिना कोई भी अंदर प्रवेश नहीं कर सकता।  

**22. सब सुख लहै तुम्हारी सरना।  
तुम रक्षक काहू को डरना॥**  
**अर्थ:**  
आपकी शरण में आने से हर प्रकार का सुख मिलता है। जब आप रक्षक हैं, तो किसी को भी डरने की आवश्यकता नहीं है।  

---

**23. आपन तेज सम्हारो आपै।  
तीनों लोक हांक तें कांपै॥**  
**अर्थ:**  
आप अपने तेज को स्वयं नियंत्रित करते हैं। आपके पराक्रम से तीनों लोक हिल उठते हैं।  

**24. भूत पिशाच निकट नहिं आवै।  
महावीर जब नाम सुनावै॥**  
**अर्थ:**  
जहां महावीर हनुमान का नाम लिया जाता है, वहां भूत-पिशाच भी पास नहीं आते।  

---

**25. नासै रोग हरै सब पीरा।  
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥**  
**अर्थ:**  
हनुमान जी का निरंतर जप करने से सभी रोग नष्ट हो जाते हैं और कष्ट दूर होते हैं।  

**26. संकट ते हनुमान छुड़ावै।  
मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥**  
**अर्थ:**  
जो कोई मन, वचन और कर्म से हनुमान जी का ध्यान करता है, उसे सभी संकटों से मुक्ति मिलती है।  

---

**27. सब पर राम तपस्वी राजा।  
तिन के काज सकल तुम साजा॥**  
**अर्थ:**  
तपस्वी राजा राम के सभी कार्यों को आपने पूरा किया।  

**28. और मनोरथ जो कोई लावै।  
सोइ अमित जीवन फल पावै॥**  
**अर्थ:**  
जो भी व्यक्ति अपने मनोवांछित फल के लिए आपकी भक्ति करता है, उसे अनंत जीवन फल प्राप्त होता है।  

---

**29. चारों जुग परताप तुम्हारा।  
है प्रसिद्ध जगत उजियारा॥**  
**अर्थ:**  
आपका पराक्रम चारों युगों (सत्य, त्रेता, द्वापर, और कलियुग) में प्रसिद्ध है, और आपने दुनिया को प्रकाशित किया है।  

**30. साधु संत के तुम रखवारे।  
असुर निकंदन राम दुलारे॥**  
**अर्थ:**  
आप साधु-संतों के रक्षक हैं, असुरों का संहार करते हैं और राम के प्रिय हैं।  

---

**31. अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता।  
अस बर दीन जानकी माता॥  
**अर्थ:**  
माता सीता ने आपको वरदान दिया कि आप आठ सिद्धियां और नौ निधियां देने में सक्षम हैं।  

**32. राम रसायन तुम्हरे पासा।  
सदा रहो रघुपति के दासा॥**  
**अर्थ:**  
आपके पास राम नाम का अमृत है, और आप सदा भगवान राम के दास के रूप में रहते हैं।  

---

**33. तुम्हरे भजन राम को पावै।  
जनम जनम के दुख बिसरावै॥**  
**अर्थ:**  
आपकी भक्ति से भगवान राम की कृपा प्राप्त होती है, और जन्म-जन्मांतर के दुख समाप्त हो जाते हैं।  

**34. अंतकाल रघुबर पुर जाई।  
जहां जन्म हरि-भक्त कहाई॥**  
**अर्थ:**  
मृत्यु के समय भगवान राम के धाम में स्थान मिलता है और हर जन्म में भगवान के भक्त के रूप में जन्म होता है।  

---

आइए, हनुमान चालीसा की शेष चौपाइयों को भी विस्तार से समझते हैं।  

---

**35. और देवता चित्त न धरई।  
हनुमत सेई सर्व सुख करई॥**  
**अर्थ:**  
अन्य देवताओं की आराधना करने की आवश्यकता नहीं है। केवल हनुमान जी की भक्ति से सभी सुख प्राप्त होते हैं।  

**36. संकट कटै मिटै सब पीरा।  
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥**  
**अर्थ:**  
जो हनुमान जी का स्मरण करता है, उसके सभी संकट और कष्ट समाप्त हो जाते हैं।  

---

**37. जय जय जय हनुमान गोसाईं।  
कृपा करहु गुरु देव की नाईं॥**  
**अर्थ:**  
हे हनुमान जी, आपकी जय हो। कृपया अपने कृपालु स्वभाव से मेरी सहायता करें, जैसे गुरु अपनी शरण में आए व्यक्ति की करते हैं।  

**38. जो सत बार पाठ कर कोई।  
छूटहि बंदि महा सुख होई॥**  
**अर्थ:**  
जो व्यक्ति हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करता है, वह सभी बंधनों से मुक्त हो जाता है और महान सुख प्राप्त करता है।  

---

**39. जो यह पढ़े हनुमान चालीसा।  
होय सिद्धि साखी गौरीसा॥**  
**अर्थ:**  
जो भी इस हनुमान चालीसा का पाठ करता है, उसे सफलता मिलती है। इस बात के साक्षी स्वयं भगवान शिव हैं।  

**40. तुलसीदास सदा हरि चेरा।  
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥**  
**अर्थ:**  
गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं कि वे सदा भगवान के सेवक हैं। हे हनुमान जी, कृपया मेरे हृदय में वास करें।  

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### **अंतिम दोहा**  
**पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।  
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥**  
**अर्थ:**  
हे पवनपुत्र हनुमान, आप संकटों को हरने वाले और मंगलमय रूप हैं। कृपया भगवान राम, लक्ष्मण और सीता के साथ मेरे हृदय में निवास करें।  

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यह पूरी **हनुमान चालीसा** का विस्तारपूर्वक अर्थ है। इसे श्रद्धा और विश्वास के साथ पाठ करने से आंतरिक शांति, आत्मबल और भगवान हनुमान की कृपा प्राप्त होती है।

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